भारतीय वायुसेना की ताकत बढ़ाने के लिए दुनियाभर के ताकतवर देशों में लोकप्रिय चिनूक हेलीकॉप्टर हमारी वायुसेना के बेड़े में शामिल हो गया हैं।
उदयपुर। भारतीय वायुसेना की ताकत बढ़ाने के लिए दुनियाभर के ताकतवर देशों में लोकप्रिय चिनूक हेलीकॉप्टर हमारी वायुसेना के बेड़े में शामिल हो गया हैं। अमरीका से आने वाला हेलीकॉप्टर सेना के बेड़े में जाने से पहले मेवाड़ की धरती पर सुरक्षा की आसमानी उड़ान भर रहा है। हेलीकॉप्टर का नाम अमरीकी मूल निवासी चिनूक से लिया गया है। इसी हेलीकॉप्टर ने ओसामा बिन लादेन को मौत की नींद सुलाया था।
यहां इसलिए आ रहा चिनूक
डबोक स्थित महाराणा प्रताप एयरपोर्ट पर अब तक चिनूक कई बार पहुंच चुका हैं। मंगलवार सुबह भी यहां दो चिनूक पहुंचे। ये चिनूक अमरीका से गुजरात के मुंदरा पोर्ट पहुंच रहे हैं, वहां से इन हेलीकॉप्टर्स को चंडीगढ़ के लिए उड़ना होता है, लेकिन रीफिलिंग के लिए इन हेलीकॉप्टर्स को उदयपुर उतारा जा रहा है। यहां रीफिलिंग होने के बाद ये हेलीकॉप्टर्स कुछ देर में जयपुर के लिए उड़ान भरते हैं और वहां से चंडीगढ़ के लिए उड़ान भरते हैं।
इसमें है कुछ खास
वायुसेना को अभी अमरीका में निर्मित चिनूक हेलीकॉप्टर मिल रहे हैं। वायुसेना ने मजबूती के लिए अमरीका से इनकी खरीद की है। भारत ने सितम्बर, 2015 में चिनूक बनाने वाली अमरीकी कम्पनी बोइंग के साथ 15 सीएच 47 एफ चिनूक हेलीकॉप्टर खरीदने के लिए 8048 करोड़ रुपए का करार किया गया था। वायुसेना के बेड़े में शामिल हुआ चिनूक ऐसा पहला अमरीकी हेलीकॉप्टर है, जो बहुत अधिक वजन उठाने में सक्षम है।
यह बख्तरबंद गाड़ियां और यहां तक कि 155 एमएम की होवित्वर तोप को लेकर भी उड़ सकता है। इस हेलीकॉप्टर के भारतीय वायुसेना में शामिल होने के बाद वायुसेना के इतिहास में यह पहली मौका है, जब भारतीय वायुसेना की एक स्क्वाड्रन में अमरीकी तथा रूसी हेलीकॉप्टर एक साथ उड़ान भरते दिखेंगे।
दो रोटर इंजन
चिनूक बहुत तेज गति से उड़ान भरता है। इसलिए बेहद घनी पहाडिय़ों में भी यह सफलतापूर्वक उड़ सकता है। मल्टी रोल, वर्टिकल लिफ्ट प्लेटफॉर्म वाला यह हेलीकॉप्टर 315 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरने में सक्षम है। आमतौर पर वायुसेना के हेलीकॉप्टर में सिंगल रोटर इंजन होता है, जबकि चिनूक में दो रोटर इंजन लगे हैं। इसमें कोई टेल रोटर नहीं है, बल्कि इसमें अधिक सामान ढोने के लिए दो मेन रोटर लगाए गए हैं। घने कोहरे तथा धुंध में भी बखूबी कारगर है। मिसाइल वार्निंग सिस्टम का इस्तेमाल किया गया है तथा इसमें तीन मशीनगन भी सेट की गई है।
इन देशों के पास भी
अमरीका, जापान, आस्ट्रेलिया, नीदरलैंड जैसे करीब 25 देश अमरीका द्वारा निर्मित चिनूक हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल कर रहे हैं। चिनूक की शुरुआत करीब छह दशक पहले 1957 में हुई थी। 1962 में इसे अमरीकी सेना में शामिल किया गया।
इनका कहना है
अब तक उदयपुर एयरपोर्ट पर रीफिलिंग के लिए कई बार चिनूक उतर चुके हैं। इन्हें यहां से जयपुर होते हुए चंडीगढ़ ले जाया जाता है।
रामस्वरूप चौधरी,एक्जीक्यूटिव (ऑपरेशंस) महाराणा प्रताप एयरपोर्ट, डबोक, उदयपुर